नई दिल्ली | 19 जून 2025
ईरान की धरती पर जब बमों की गूंज सुनाई दे रही थी, उस समय वहां मौजूद 110 भारतीय छात्र सिर्फ पढ़ाई नहीं, हर पल ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रहे थे। लेकिन भारत ने फिर एक बार साबित कर दिया — अपने लोगों को कभी अकेला नहीं छोड़ता।
कई दिनों तक भूख, डर और इंटरनेट बंदी के बीच, इन छात्रों का परिवार से संपर्क टूट चुका था। हर मिनट एक नए डर की कहानी लिख रहा था।
लेकिन 48 घंटे के भीतर भारत सरकार ने वो कर दिखाया, जो बड़े-बड़े देश महीनों में नहीं कर पाते।

ऑपरेशन सिंधु शुरू हुआ।
छात्रों को ईरान के अलग-अलग हिस्सों से निकालकर आर्मेनिया पहुंचाया गया। फिर वहां से एक विशेष विमान के ज़रिए उन्हें दिल्ली लाया गया।
आज जब वो फ्लाइट भारत की धरती पर उतरी — वो सिर्फ एक लैंडिंग नहीं थी, वो था सुकून, गर्व और राहत का मिलाजुला एहसास।
“मेरे बेटे की आवाज़ 4 दिन बाद सुनी थी… बस ज़िंदा था, यही काफी था” – एक मां की आंखों में आंसू थे
दिल्ली एयरपोर्ट पर आज हर किसी की आंखें नम थीं — कोई बेटी को सीने से लगा रहा था, कोई बेटे की शक्ल देखकर रो पड़ा।

एक छात्रा ने कहा,
“हमने सोचा नहीं था कि हम फिर से घर पहुंच पाएंगे। हमें बस बमों की आवाज़ें और सन्नाटा सुनाई देता था।”
सरकार की इस तेज़ कार्रवाई की हर तरफ तारीफ़ हो रही है।
विदेश मंत्रालय, एयर इंडिया, और सुरक्षा एजेंसियों ने मिलकर यह मिशन सफल किया — और यह सिर्फ एक रेस्क्यू नहीं था, यह था भरोसे का वादा।
यह भारत है – जो चाहे जहां हो, उसे वापसी मिलती है
ऑपरेशन सिंधु ने ये साबित कर दिया कि भारत अपने हर नागरिक के लिए ढाल बनकर खड़ा रहता है।
यह मिशन सिर्फ छात्रों की वापसी नहीं, एक देश के आत्मविश्वास और संवेदनशीलता का सबूत है।