शिक्षा मंत्रालय ने एक अहम कदम उठाया है। अब देश के सभी सरकारी और निजी स्कूलों में मासिक मानसिक स्वास्थ्य काउंसलिंग सेशन को अनिवार्य कर दिया गया है।
क्यों लिया गया यह फैसला?
पिछले 2 वर्षों में स्कूली बच्चों में तनाव, चिंता, अकेलापन और पढ़ाई का डर काफी बढ़ा है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, हर 10 में से 4 बच्चे मानसिक तनाव का शिकार हो रहे हैं।
इस alarming स्थिति को देखते हुए मंत्रालय ने यह फैसला लिया है।
क्या होगा स्कूलों में नया?
हर महीने एक मेंटल हेल्थ काउंसलिंग सेशन अनिवार्य
साइकोलॉजिस्ट या प्रशिक्षित काउंसलर की नियुक्ति
बच्चों के साथ अलग-अलग आयु वर्ग के अनुसार बातचीत
टीचर्स और अभिभावकों को भी मानसिक स्वास्थ्य ट्रेनिंग

शिक्षा मंत्रालय का बयान:
“बच्चों का दिमागी संतुलन पढ़ाई से भी ज्यादा जरूरी है। मानसिक रूप से स्वस्थ बच्चे ही देश का भविष्य बना सकते हैं।”
छात्रों और अभिभावकों की प्रतिक्रिया
अभिभावकों का कहना है कि यह कदम बच्चों के भविष्य के लिए बेहद जरूरी था।
छात्रों ने भी राहत महसूस की है कि अब वे खुलकर अपनी बातें कह सकेंगे।
क्या इससे फर्क पड़ेगा?
विशेषज्ञों के अनुसार, यदि ये काउंसलिंग ईमानदारी से की गई तो
बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ेगा
डिप्रेशन और एंग्ज़ायटी के मामले घटेंगे
शिक्षा का माहौल सकारात्मक बनेगा
शिक्षा केवल किताबों से नहीं होती, मानसिक स्वास्थ्य भी उसका हिस्सा है।
शिक्षा मंत्रालय का यह फैसला बच्चों के भविष्य को मजबूत बना सकता है।
अब ज़रूरत है कि स्कूल इसे केवल नियम नहीं, जिम्मेदारी समझें।
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